आना गर बीच हमारे

(तर्ज : सखि पानिया भरत कैसा जाना... )
आना गर बीच हमारे, दिखलादे रूप पियारे ! ।।टेक।।
क्यों नाहक देर कटाते, नहिं मनकी प्यास मिटाते जी ।
बिन दर्शन भूख जिया रे ।। दिखलादे०।।१।।
जग महिमा गावे तेरी, बिन देखे शांति न मेरी जी ।
निर्धार यही रखिया रे ।। दिखलादे०।।२।।
संतोने गाया महिमा, परतंत्र हमारी सीमा जी ।
क्योंकर यह आँख किया रे ।। दिखलादे०।।३।।
देखे बिन शांत न होवे, ये इंद्रिय भूले रोवे जी ।
तुकड्या पग आस लिया रे ।। दिखलादे०।।४।।