तेराहि भरोसा साँई ! नहिं कोई मुझे यदुराई !

(तर्ज : सखि पानिया भरन केसा जाना... )
तेराहि भरोसा साँई ! नहिं कोई मुझे यदुराई ! ।।टेक।।
सब अपना मतलब पाते, हरघडी मुझे फैँसवाते जी ।
भूलवाते कहकर भाई ।। नहिं ०।।१।।
कभि विवेक मारे ठोला, कभि छूटे मनका गोला जी ।
कहिं बुध्दी आप कराई ।। नहिं ०।।२।।
कहिं कुदरत खैंचा लेवे, कहिं माया गोता देवे जी ।
परतंत्र इसे बन जाई ।। नहिं ०।।३।।
कब नौका पार चढेगी, मुक्तीमें जाय पडेगी जी ।
तुकड्या तन-आस लगाई ।। नहिं ०।।४।।