साँवरिया ! मोहनि डारी
(तर्ज : सखि पानिया भरन कैसा जाना...)
साँवरिया ! मोहनि डारी, फँसवाई जान हमारी ।।टेक।।
घर कामधाम नहिं सूझे, कुछ खानपान नहिं रूचे जी ।
सब तनकी याद बिसारी ।। फँसवाई ०।।१।।
घर मात पिताजी रोवे, नहिं खाने ! भूखे सोवे जी ।
खुब दिया नशा भर भारी ।। फँसवाई ०।।२।।
जो काम करनको जावे, तू उसिमें आँख बतावे जी ।
दिल खैंच लिजाना जारी ।। फँसवाई ०।।३।।
क्या आग लगाई तनको, अब डारो प्रेम -झरनको जी ।
तुकड्या सब तोड करारी ।। फँसवाई ०।।४।।