कहे साँब सदाशिव भोला
(तर्ज : ना छेडो गालि देऊंगी भरने दे घागरी ... )
कहे साँब सदाशिव भोला, जपना माला आत्मरंगी ।।टेक।।
जहाँ खास मणीपुर ठाना, वहाँ श्वास रूपसे जाना ।
सुख -कुंडलनी ढलवाना, फिर बन जाना स्वात्मभंगी ।।१।।
खुब एकसे एक मकाना, जहाँ विष्णु रुद्र-बिछाना ।
फिर भूवर सुख अजमाना, रुपको पाना संतसंगी ।।२।।
जब ब्रम्हरंध्रको पाया, फिर आप न दूजा आया ।
सब एकमें एक समाया, टूटे माया-फाँस जंगी ।।३।।
कहे तुकड्या अंतर होना, जब मजा मौजसे पाना ।
फिर सिध्दरुप बन जाना, जाना आना टूट भंगी ।।४।।