कहे कपिलमुनी अवतारी

(तर्ज : ना छेडो गालि देऊंगी भरने दे घागरी ... )
कहे कपिलमुनी अवतारी, क्यों अविचारी हो रहा है ? ।।टेक।।
यह सुख-दुख जोभी पाता, वह तेरेसे सब होता ।
क्यों आपहि करके रोता, गोता खाता जा रहा है ? ।।१।।
जो आना जगमें पाया, वह तेरेसे तू आया ।
क्यों आकरके पछताया? मरना जीना गो रहा है ।।२।।
सब तेरे हाथमें गुंडी, अब तोड कालकी मुंडी ।
ले प्रभू-नामकी झंडी, क्योंकर ठंडी सो रहा है ? ।।३।।
जैसा करता करनीको, वैसा भरना हैं तुझको ।
कहे तुकड्यादास गुरुको, जपके भारा ढो रहा है ।।४।।