कहे कृष्णनाथ अर्जुनको
(तर्ज : ना छेडो गालि देऊंगी भरने दे घागरी .... )
कहे कृष्णनाथ अर्जुनको, आप अपनको जान प्यारे! ।।टेक।।
जो आत्मरुप परकाशी, वहि सत्य जान अविनाशी ।
कभी जले न लागे फाँसी, काँप कफनको जान प्यारे !।।१।।
जब टूटे नष्ट जड देही, तू निकल जाय उससेही ।
कुछ धोखा तुझको नाही, वह जो साँई जान प्यारे! ।।२।।
ये सब तेरे बनवाये, तू रूप न, रूप समाये ।
ये कहाँके गोत लगाये, अपने रूप को जान प्यारे ! ।।३।।
मम अंशरूप परकासा, तब जीव रूप धर आशा ।
कहे तुकड्या एक तमाशा, कोउ न दूजा जान प्यारे ! ।।४।।