अजि ! दो दर्शन महाराज !

(तर्ज : सदा रहो अलमस्त ... )
अजि ! दो दर्शन महाराज ! आज चरणोंमे आया हूँ ।।टेक।।
लख चौरासी भटकावत, यह नरतन पाया हूँ ।
अब कुछ लाज रखो मेरी, भवसे पछताया हूँ ।।१।।
भव - सागर यह दुस्तर, जरसे जात बहाया हूँ ।
जम -डंडा सोसे नहिं अब, यह अरजी लाया हूँ ।।२।।
मायारूप विषयनके माँही, जाय समाया हूँ ।
सुंदर काया बीत रही, नहिं काज कमाया हूँ ।।३।।
दया करो प्रभुराज ! आजतक सीस नमाया हूँ ।
तुकड्यादास दरसबिन सारा, काम भुललाया हूँ ।।४।।