खिलकत घूमा सारा जी !

(तर्ज : सदा रहो अलमस्त .... )
खिलकत घूमा सारा जी ! खालिक न नजर आता है ।।टेक।।
कहाँ उसीका पता मिलेगा, वही पूछता तुमको ।
मिले जिगर दिलदार यार जब, मारूँ जूते जमको ।।१।।
दिया दगा है बहुत दिनोंसे, कछु न कदर कर मेरी ।
संतसाधुसे यहि बर माँगूं, टुटे जन्मकी फेरी ।।२।।
शास्त्रपुराणहि  बाच-बाचकर, उमरी सारी खोई ।
कुछ न पता पाता है उसमें, गर्व चढे मनमाँही ।।३।।
काशी मथुरा जाकर देखा, सार्थक भूले मेरा ।
देख पुजारी यों कहता है, तरा बाप अब तेरा ।।४।।
मेरी फिक्र अब उसको होगी, जो निजरूप बतावे ।
कहता तुकड्या सद्गुरु के बिन, बिरथा जनम गमावे ।।५।।