है कोई ऐसा प्यारा, निज -घटमें खुदा बतलावे ?
(तर्ज : सदा रहो अलमस्त ...)
है कोई ऐसा प्यारा, निज-घटमें खुदा बतलावे ? ।।टेक।।
ज्ञान-अग्नि तनमें बढवाकर, द्वैत-भास जलवावे ।
जानपनकी खाक कराकर, तनमें भस्म रमावे ।।१।।
जहाँ रंगबिन झलके ज्योती, जैसे मोती पावे ।
जिवनकला वर्षाव करे जब, रंग:तरंग उठावे ।।२।।
चढे अर्गन दरबार दसव पर, जिम जल -बूंद समावे ।
अस्तीं भाती प्रीय सच्चिदानंद रूप बन जावे ।।३।।
बिन क्रोधी जल भरा शाँतिसे, उसमें स्नान करावे ।
जीवदशा अपनी धुलवाकर, आत्मरूप बन जावे ।।४।।
आपहि आप शयन की माला, तन अंदरमें गावे।
कहता तुकड्या वही गुरु कर, नहिं तो जन्म फिरावे ।।५।।