हमारा प्यारा कहाँपे हारा ?

(तर्ज : सुनोरि आली गगनमहलसे...)
हमारा प्यारा कहाँपे हारा ?
खोज नहीं क्या छुपा है न्यारा ? ।।टेक।।
मकान ढूँढ़ा दुकान ढूँढ़ा यह देवल सभी निहारा ।
अजब तमाशा बना है उसका, जहाँ निकारा वहाँपे सारा ।।१।।
मजीद देखा सजीद देखा, देखलिया सब नदी किनारा ।
पता नही है कहाँपे बैठा, न है हमारा न है तुम्हारा ।।२।।
ये दोनों मजहबके टंटे झूठे ,कहाँका किन्हा यह ढोंग सारा । 
खुदा ख़ुदीसे जुदा न होवे, सभी जगहमें वह राम मेरा ।।
न उसकी कहाँपे बनी है मूरत, वह सूरतीमें बना उजारा ।
वह दास तुकड्याके बैठा दिलमें, कहाँ ढुंढोगे बहार सारा ।।४।।