रहे सभीमें वह सबसे न्यारा ।
(तर्ज : सुनोरि आली गगनमहलसे... )
रहे सभीमें वह सबसे न्यारा ।
वह हकसे प्यारा रहे हमारा ।।टेक।।
न किनसे माँगे न कुछभी त्यागे, रहे उसीमें करे गुजारा ।
न द्रोह करता न लोभ धरता, बना बनाया यह खेल सारा ।।१।।
कभू न जागे कभू न सोवे, न दिल ख़ुशी है न द्रोह देखा ।
कहाँ रहे फिर वतन उसीका, सभी जगहमें भरा पियारा ।।२।।
न ओढता कुछ न छोड़ता कुछ, न खौंफ धोखा रखे शहूरा ।
न साधनोंकोभी मानता है, औ साधनोंसे रहे न न्यारा ।।३।।
अजब तऱ्हा इक उसीकी देखी, न बेदभी कह सके बिचारा ।
यह दास तुकड्याको आस उसकी, जो तीन तालोंसे नैन मोरा ।।४।।