हमारे दिलको वही पछाने
(तर्ज : सुनोरि आली गगनमहलसे ...)
हमारे दिलको वही पछाने, जो खास अपनेही दिलको जाने ।
या प्रीतसे हो चुके दिवाने, या द्रोहके घरको जाल छाने ।।टेक।।
न जिसको हककी जमानती है, न प्रेम ईश्वरका भी रती है ।
कहाँ वह जाकर किसीको माने, जो द्रोहके भेदमें दिवाने ।।१।।
न ज्ञान जिनको हुआ हुजुरका, न प्रेम जिनमें कहीं गुजरका ।
वे है जगतमें रहे - नहींसे, सदा हुशारीकी बात ताने ।।२।।
अगर किसी के वतनको जानो, तो खास अपने जतन पछानो ।
वह दास तुकड्या उन्हींका प्यारा, मिटे है जिनके दुई-निशाने ।।३।।