दिननके दुखवार प्रभु, इक प्रेमहिके संग खेल रहा है

(तर्ज : सुनोरि आली गगनमहलसे...)
दिननके दुखवार प्रभु, इक प्रेमहिके संग खेल रहा है ।।टेक।।
जात न देखत पाँत न देखत, देखपना सब भूल रहा है ।
अर्जुनके संग सारथ में खुब, चाहके साथ सुडोल रहा हैं ।।१।।
द्रव्य न चाहता मान न चाहत, चाहपना सब छोड रहा है ।
धन्य सुदामा के चावल खावत, मित्रनके सुख बोल रहा है ।।२।।
ज्ञान न देख अजान न देख, न देख पुजा अरु कर्म कहाँ है ।
कहे दास तुकड्या वह तो, एक निर्मल प्रेमसे झूल रहा है ।।३।।