जगे रहो हर हमेश प्यारे !

(तर्ज : सुनोरि आली गगनमहलसे...)
जगे रहो हर हमेश प्यारे ! बिना जगे प्रभु-प्रेम नहीं है ।
जगे हुए जो हुशार बंदे, उन्हें किसीका नेम नहीं है ।।टेक।।
यहाँपे देखो वहाँपे देखो, प्रीत बिना परतीत नहीं है ।
सभी जगहमें वह प्रेम देखो, जीस प्रेममें हार-जीत नही है ।।१।।
वह प्रेम पाकर जगा कबीरा, जहाँ किसीकी भीत नहीं है ।
सदा रहो अलमस्त निरामय, बिना प्रभू कोई मीत नहीं है ।।२।।
जो प्रेमसे लौ लगी रहेगी, तो प्रेममें कभू रीत नहीं है ।
वह दास तुकड्या उसीका प्यारा, बिनागुरु कहिं हीत नही है ।।३।।