कहाँ बताऊँ मैं गर्ज अपनी

(तर्ज : सुनोरि आली गगनमहलसे...)
कहाँ बताऊँ मैं गर्ज अपनी, कौन सुने बिन प्रभू ! तुम्हारे ।
सभीके अर्जीपे ख्याल देकर, तुम्ही करोगे निकाल सारे ।।टेक।।
न बाप भाई दया करेंगे, कहे वे स्वारथके गीत प्यारे ।
मुझे तराना किसे पसँद है, जो तारता है ये भक्त सारे ।।१।।
बडा कठिन है रचा पसारा, न प्रेम पलभी लगे तुम्हारे ।
इसीमें मरना है काम मेरा, सिखाते अपनीहि राह सारे ।।२।।
कई गये और कई चले है, न राह अपनी जगह सुधारे ।
हे नाथ ! हमपर करो दया अब, त्यजे सभी बस रहे सहारे ।।३।। 
यह शानशौकतको जाल मेरी, लगादो राखहिको अंग मेरे ।
वह दास तुकड्या मिला तुहीमें, ये अर्ज पेशीमे है निछारे ।।४।।