खड़ा हो प्यारे ! क्या सोया रे

(तर्ज : शंकरजी मैं बाल तुम्हारो...)
खड़ा हो प्यारे ! क्या सोया रे, सोनेसे बदनाम हुआ ।।टेक।।
मकानको तो आग लगी है, राम-जगहमें काम हुआ ।
क्यों जलता है इस झूठे जगमें, कभी नहीं आराम हुआ ।।१।। 
सोते सोते राज गमाया, दीन गया अब शाम हुआ ।
मरनकी गोली चलेगी तुझपर, जमके घर बेफाम हुआ ।।२।।
यह दुनिया तो रंग रंगीली, इसके फंदेमें भ्राम हुआ ।
है नहीं कुछभी भरोसा, यह न हुआ फिर वह न   हुआ ।।३।।
मानले कहना समझकर, सोना यह रोनाहि हुआ ।
कहत तुकड्या यह सोच करले, राम भजो निजधाम हुआ ।।४।।