हर जगहकी रोशनी में

(तर्ज : शंकरजी मैं बाल तुम्हारे... )
हर जगहकी रोशनी में,  दिलभुलैय्या तुम्हीं तो हो ।।टेक।।
अगर तुम्हारी छटा न होती, तो सारि खिलकत मरी हुई थी ।
कहाँ छुपाते हो हुस्न अपना, चेत-चितैय्या तुम्हीं तो हो ।।१।।
तुम्हीं हो देवल, तुम्हीं हो मसजिद, तुम्ही हो मूरत, तुम्हीं पुजारी ।
ढँकाया परदा करम करमका ,सबर शुकरिया तुम्हीं तो हो ।।२।। 
तुम्हरि कुदरतहि छा रही है, वह पूरे आशकको पा रही है ।
नही तो योंही दफा रही है, झूल-झुलैय्या तुम्हीं तो हो ।।३।।
कहाँपे पर्वत, कहाँ समुंदर, कहाँपे बादल, कहाँ फँवारे ।
लाखो घटाता लाखो बढाता, खेल खिलैय्या तुम्हीं तो हो ।।४।।
कहाँपे लैला, कहाँपे मजनू, कहाँ बादशा, कहाँ फकीरा ।
कहाँपे आशक कहाँपे माशुक, प्रेम पिलैय्या तुम्हीं तो हो ।।५।।
वह दास तुकड्याको आस भारी, न नाम तेरा भुलूँ मुरारी !
नशा चढादो हुजूर ! पूरी, डोल डुलैय्या तुम्हीं तो हो ।।६।।