दिलभरम जबतक न छूटा, तबतलक आना रहा

(तर्ज : मानले कहना हमारा... )
दिलभरम जबतक न छूटा, तबतलक आना रहा ।।टेक।।
चाहे करलो दानभी, अजि ! यह करो नादानभी l
जा फिरो मनमानभी, आना तहाँ      जाना    रहा ।।१।।
शास्त्रभी पढ़ते रहो, या मूखसे ईश्वर कहो ।
कुछ नहीं बनता जहाँतक दिल -कपट घटमें रहा ।।२।।
भेख लो या जोग लो, चाहे बसो बन जायकर ।
सत्यको जाना नहीं जी ! तबतलक   भोना   रहा  ।।३।।
आत्मज्योत लगी जहाँ, नहिं दूसरा नजरीनमें ।
कहत तुकड्या जब टुटे, मरना न जीना क्या रहा ।।४।।