दिन-जमाने खूब बदले, रूँह बदला ही नहीं
(तर्ज : मानले कहना हमारा...)
दिन-जमाने खूब बदले, रूँह बदला ही नहीं ।।टेक।।
योग बदले, कर्म बदले, कर्म बदले धर्मके ।
युग चारों फेर बदले, रूँह बदलाही नहीं ।।१।।
उम्र बदले, राज बदले, काज बदले संगसे ।
मौत के भी दौर बदले, रूँह बदलाही नहीं ।।२।।
जन्म बदले, देह बदले, रंग बदले, नूरके ।
शशि-रवीके फेर बदले, रूँह बदलाही नहीं ।।३।।
नर्क बदले, स्वर्ग बदले, आस बदले, हरघडी ।
ज्ञानके बिन सार बदले, रूँह बदलाहीं नहीं ।।४।।
स्वरुपका उजियारा है, वहँ रूँहका कया पार है ।
कहत तुकड्या तार है, तो रूँह बदलाही नहीं ।।५।।