रे मन ! मतकर सहबत झूठी

(तर्ज : मोसम कौनन कुटिल खल कामी... )
रे मन ! मतकर सहबत झूठी । नित पी गमकी बुटी ।।टेक।।
आठहू जाम प्रभु-सुमरण कर, तोड कामकी चूटी ।
निजानंदमे मस्त रहे जब, मिले       ब्रम्हरस - घूँटी ।।१।।
जब जब बिपत पड़े तनहूपे, तब तब जागो ऊठी ।
ज्ञानशस्त्रको पास कराकर, तोड कालकी     खूँटी ।।२।।
तुकड्यादास कहे निश्चय कर, तबही आशा छूटी ।
आशा-मनशा जबलग घरमों, तबलग द्रोहकी कूटी ।।३।।