एहसान किसीका क्या हमपर, हम हरिका बनाया खाते हैं।
(तर्ज : एहसान तेरा होगा मुझपर. ... )
एहसान किसीका क्या हमपर, हम हरिका बनाया खाते हैं।
गुण गाते हैं उसिका हरदम, उसपर ही जिया जगाते हैं ।।टेक ॥
कभू न किसिका चाहते हैं बुरा, नहीं छोड़ते सत् कार्य अधूरा।
उपकार बने जितना करते, पर नहिं बदली में अधाते हैं।
गुण गाते हैं उसिका हरदम ! 0।।1।।
खाते हैं रूखि-सुखी जो मिले, जाते हैं प्रेमी जहाँ ले चले।
सब मित्र बनाकर रहते हैं, जो-जो मिलने को आते हैं।
गुण गाते हैं उसिका हरदम! 0।।2 ॥
जीवन में कहिं झगडा-रगडा, नहिं आघात किया है किनपर।
सहतेही गये खटनटकी कहीं, फिर प्रेम शब्द सुनवाते हरदम ।
गुण गाते हैं उसिका हरदम! 0।।3॥
कष्ट पडेपर कई हँसते हैं, मन-मस्तीसे कई रोते हैं।
तुकड्या कहे, गुरु-किरपासे हम; सब दुनियाँ अपनाते हैं।
गुण गाते हैं उसिका हरदम ! 0।।4।।