जो नर अपना घर नहिं जाने ।
(तर्ज : मोसम कौनन कुटिल खल कामी..)
जो नर अपना घर नहिं जाने । तौलग रहत दिवाने ।।टेक।।
जबलग दीप न मिले पतंगा, तबलग भ्रमत भनाने ।
दीप मिले आशिक बन जावे, नहीं मौतको माने ।।१।।
तैसो प्रेम लगे नहिं प्रभुसो, भटके काननम्याने ।
निर्मल भक्ति मिले हिरदेमों, रटे न छोडे ताने ।।२।।
जबलौं सुख-दुःखनको देखे, तबलौं प्रीत न जाने ।
तुकड्यादास कहे इन्हे छोडे, सौ घर - राह पछाने ।।३।।