साधो ! नाम बिना गति नाहीं

(तर्ज:मोसम कौनन कुटिल खल कामी...)
साधो ! नाम बिना गति नाहीं, सब नामहुसे पाई ।।टेक।। 
नाममंत्र सुमरो कलजुगमों और न कोई कमाई ।
नामहिसे सब संत उध्दारे, राखो प्रेम लगाई ।।१।।
योग याग कछु काम न आवे, भटके मन दिशा दाही ।
अंतर प्रेम करो प्रभु-सुमरण, मुक्त करे पलमाँही ।।२।।
नामको महिमा कोउ न जाने, अजब नाम - प्रभुताई ।
जिस नामहिसे रटते शंकर, शीतल अंग कराई ।।३।।
नामसरीखी दवा न कोई, जो भवरोग हटाई ।
अजामील इक नाम उचारा, कोटिन पाप कटाई ।।४।।
सबकी आश छोड कामनको, रामहि राम रिझाई ।
तुकड्यादास कहे वह तरता, पूरा भरोसा भाई ! ।।५।।