करना सब करनीको लागा

(तर्ज : मोसम कौनन कुटिल खल कामी...)
करना सब करनीको लागा, तू पहलेहि निसंगा ।।टेक।।
कर्मरुपको साक्षी होकर, क्यों लगवाता डागा ।
डाय वही भासनसे भासे, तू निर्लेप निरंगा ।।१।।
द्रष्टाभी दृश्यहिसे कहिये, नहिं तो तू नित नंगा ।
नंगहिं भास रंगको दीन्‍हो, तू सबहीसे अनंगा ।।२।।
तुझमें नहिं है बंध, बंधसे न्यारा तूहि अभंगा ।
सत्‌संगत कर ज्ञान जानकर, तब फीट्यो मन -पांगा ।।३।।
जबलौं प्रीत नहीं परतीती, तबलौं भूल न संगा ।
तुकड्यादास कहे अजमाले, हो अनुभवसे जागा ।।४।।