साधो भाई ! रहगयी झोलि तुम्हरी
(तर्ज : मोसम कौनन कुटिल खल्त कामी...)
साधो भाई ! रहगयी झोलि तुम्हरी, रोति है माला बिचारी ।।टेक।।
दंड कमंडल भंगका लोटा, पड़ि है कमलिया कारी ।
छोड़ चले कैसे इनको अब, क्या ली साथ अँधारी ?।।१।।
सुनी पड़ी है संग धूनिया, झोपडि सोई बिचारी ।
ऊठ चले आखिरमें नंगे, खुली लँगोटी सारी ।।२।।
चिमटा तो मट्टीमें बैठा, लटकी खूँट तंबोरी ।
छोड़ चले कैसे इनको अब, कुछ तो लिजाओ धतूरी ।।३।।
काल - तमाचा सब पर बीते, नर हो या कोई नारी ।
तुकड्यादास कहे प्रभुके बिन, बन गये अंत भिखारी ।।४।।