ऐलान किया हरिने उसी दिन, में मानव-जन्म तुम्हे देता।

तर्ज : एहसान तेरा होगा मुझपर... )

ऐलान किया हरिने उसी दिन, में मानव-जन्म तुम्हे देता।
कहिं तुमह भुले जावो मुझको ,तब पाओगे भारी गोता। ।।टेक ।।
मुझमें नहीं है भेद किसीका, कौन दरिद्री, कौन सखीका !
जिसने किया दुनिया में करम, वहि प्यारा सबकाही होता।
कहिं तुमही भुले जाओ मुझको! 0।।1।।
इन आँखोंसे कोइ अंधा है, कोइ हाथ-पाँवसे है लेंगडा!
यहाँ तिरछा भी बनता है कोई, सब अपने करमका है नाता ।
कहिं तुमही भुले जाओ मुझको! 0।।2।।
बालकपनसे ज्ञानी बनकर, लेता है बैराग चढाकर ।
लाखोंको करे उपदेश कोई, किस्मत की ऐसी हैं बाता।
कहिं तुमही भुले जाओ मुझको ! 0।।3।।
क्यों नाहक उनपर दोष अपन देकर फिर पछताता है मन ।
कहता तुकड्या सुन सज्जन तू , हुशियार रहे जगमें जाता ।
कहिं तुमही भुले जाओ मुझको ! 0।।4।।