जगमें ! हीरा मिलत कठिना

(तर्ज : मोसम कौनन कुटिल खल कामी...)
जगमें ! हीरा मिलत कठिना, कोड़ बिरलेने चीन्हा ।।टेक।।
क्या घर घर साधू फुर आया, तो वह जाय पछाना ।
बिन सागर नहिं उपजे मोती, और जगह सब सूना ।।१।।
जो कोइ होत रंगको रंगिया, सो रंग भर भर चीन्‍हा ।
नुगरोंके मन भूल बसत है, गोते   खाय     दिवाना ।।२।।
अपने हेत नेत बदलाकर, घुमता है मनमाना ।
तो क्या तार-तरैया किसको ? डूबे  लेय     जहाँना ।।३।।
मत भूलो ऊपरके रंगको, जब देखो अजमाना ।
तुकड्यादास बिना सद्गुरुके, नहिं पावत कहुं ग्याना ।।४।।