आशक क्या जगको समझे ?

(तर्ज : पूरण ब्रह्म सनातन तू... )
आशक क्या जगको समझे ? वह तो दुनियासे न्याराहि रहे ।।टेक।।
पाप न जाने, पून न जाने, धर्म-कर्म कुछभी न करे ।
मस्त बसे तन - अंदरमें, परमेश्वरका  प्याराहि    रहे ।।१।।
क्या जगको समझाना है ? उसे देखत पूरण काज भये ।
पाप कटे दर्शन करते, वहाँ प्रेमकी जलधाराहि बहे ।।२।।
मरनेका डर है न जिसे, जोकि तनमें मरन मिलाय लिया ।
मुक्त सदा जगमेंहि रहे, वहाँ मरन-जिना माराहि रहे ।।३।।
धन्य उसीके भाग बडे, जो चरण धरे उसके मनसे ।
तुकड्या गुण कुछ गात नहीं, इस सेवामें सारहि रहे ।।४।।