कौनसी गर्ज थी, या के नामर्ज थी ।
(तर्ज: क्या मिल गया है, कया खोगया..
कौनसी गर्ज थी, या के नामर्ज थी ।
हम तो थे ही मिले, फिर क्या हर्ज थी??
एकसे हि नहीं खेल होता कहीं।
करके दो हो गये, क्यों यही फर्ज थी ?।।टेक ।।
न माया बनेगी, तो. दुनियाँ कहाँ??
और दुनियाँ नही तो मजा भी कहाँ??
ये सारी मजामें न चेतन रहा-।
तो ये ना रहा और वो ना रहा-॥
और वो ना रहा ! ।।1॥
ये सारे मिले फिर भी एकी नहीं।
तब मिलना-मिलाना सही ही नहीं।।
कहता तुकड्या, मिले हो तो दिलके सही ।
फिर तो आये मजा, जो पुंछोना कहीं ।।2।।