हरगीज मेरा दिल मान रहा

(तर्ज : अल्लाह का परदा बन्दहि था...)
हरगीज मेरा दिल मान रहा, जाना परदेश फिरानेको ।।टेक।।
टूट  गया  दाना - पानी, हमरा इन नगरीवालोंसे ।
थोडे दिनकी अब बाकी है, फिर बांधू  गाँठ   सिरानेको ।।१।।
आज तलक इस नगरीमें, खुब झोंकझाँक मौजें किन्ही ।
बस  माफ  करो रहनेवालो ! जाता हूँ  धाम   फिरानेको ।।२।।
कुछ लायी थी गठड़ी घरसे, वह दिलसे खत्म करी सारी ।
अब याद हजुरकी है मनमें, तुकड्या यह नाम गँवानेको ।।३।।
                                          (-- इलाहाबाद)