अब हँसनेवाले सारे है
(तर्ज : अल्लाह का परदा बन्दहि था...)
अब हँसनेवाले सारे है, फिर रोनेवाले कोइ नहीं ।
सब चलते घरके प्यारे है, पड़तीके हारे कोइ नहीं ।।टेक।।
माँँ कहती बेटा मेरा है, जब बेटा घरका काज करे ।
नहि तो कहे मुँंहको काला कर आखिरमे साथी कोइ नहीं ।।१।।
वह तात कहे लडका मेरा, मरते जल मुँहमे डारेगा ।
नहिं लड़केने कुछ काम किया, खिलवानेवाले कोई नहीं ।।२।।
पैसा पैसा जब दिखता था, तब भाई हाजिर रहता था ।
जब पैसा करसे छूट गया, तब देनेवाले कोइ नहीं ।।३।।
ज्वानीका तोरा था भारी, पति मेरा कहती थी नारी ।
जब सबहूके कंगाल भया, तब दारा दारी कोइ नहीं ।।४।।
जब हाकपे हाक दिलाते थे, तब दोससे दोस मिलाते थे ।
जब दोसहिका मुँह बदलगया, तब हाकोंवाले कोइ नहीं ।।५।।
सब दुनिया स्वारथसाथी है, जब तनमें जीवन-हाथी है ।
जब तनसे हाथी छूट पडा, पहुंचानेवाले कोइ नहीं ।।६।।
इक ईश्वर साथ दिलावेगा, जो रूख सूखा कीन्हा हो ।
तुकड्याको पार वही देवे, बिन गुरुके जाती कोइ नहीं ।।७।।