जिस स्वारथको तूने झूठ कहा
(तर्ज : अल्लाह का परदा बन्दहि था...)
जिस स्वारथको तूने झूठ कहा, उस स्वारथमें अब रहना क्या ? ।।टेक।।
यह दुनिया भूल भूलाती है, अपने रँगमें रँगवाती है ।
इकबार छियाको छीक दिया, उस छींको फिरसे पीना क्या ? ।।१।।
ये शत्रू तो अजमाये थे, ये चोर जबाँ कहलाये थे ।
जो दुर्जन घातक हैं तनमें उनकी जिगरीमें जाना क्या? ।।२।।
भवपूर बड़ा दुखवारा है, यह लब्ज जबाँपर डारा है ।
अब क्यों करते हो प्यारा है, इस झूठे दिलको कहना क्या ? ।।३।।
इक बार तुम्हारा ऐसा था, सब राम हि राम कहा करते ।
अब राम जगहपर काम हुआ, अजि मुरदा होकर जीना क्या ?।।४।।
मनमें अपने कुछ सोच करो, अब थोरे दिनकी बाकी है ।
सब दिन सतसंगत साधलिनो, अब आखिर नर्क उठाना क्या ? ।।५।।
मानो कहना मानो कहना, दुनिया ऐना पलहीका है ।
तुकड्याकी याद नहीं भुलना, जो छोड़ा है सो लेना क्या ? ।।६।।