जब भेद मिटा नहिं रहनीका

(तर्ज : अल्लाह का परदा बन्दहि था...)
जब भेद मिटा नहिं रहनीका, तब देख परे कुछभी न किया ।
क्या बातनमों भगवान मिला ? यह साखी साख न कोउ दिया ।।टेक।।
चाहे कितने दिल शास्त्र रटो, रटवाओ या खुब योग डटो ।
जब मैं - तू  भाव बनाहि रहा, तब जीवनमें फिर आय जिया ।।१।।
लाखोहि भले सुर-गीत कहो, एकांत रहो लोकांत रहो ।
जब मनकी भ्रमणा काफी है, तब जानो बिरथा जोग लिया ।।२।।
खुब रैनदीन धूनीमें बसो, या प्राण चढा ब्रह्मांड घुसो ।
तुकड्या कहे राह मिली न किसे, बिन सद्गुरु प्रेम लगा न लिया ।।३।।