कहाँतक भोगुँ भटकना भाई !
(तर्ज : जाग मुसाफिर क्या सूख सोवे ... )
कहाँतक भोगुँ भटकना भाई ! दूर मुकाम कराना है रे ।।टेक।।
आजतलक अपनेको भूला, भूलपना बिसराना है रे ।
संत-चरण बिन ज्ञान न पावे, सद्गुरु - नाम रिझाना है रे ।।१।।
कौन घड़ी ऐसी आवे अब, आत्म-मुकाम धराना है रे ।
चरण - सहार मिलाकर प्रभुको नौका पार तराना है रे ।।२।।
माफ करो गुनहोंको मेरे, छोड मरा हूँ कहना है रे ।
मात पिताजी! यह बर दीजो, ईश्वर - गुणहि भराना है रे ।।३।।
आँख खुले जगतारक की, जब प्रेमसे खींच लिजाना है रे ।
तुकड्या बाल जोर कर बोले, नाथको माथ मनाना है रे ।।४।।