जिसके मन -बिच राम बसो है
(तर्ज : जाग मुसाफिर क्या सुख सोवे ..... )
जिसके मन - बिच राम बसो है, वह कामनसे न्यारा है जी ।।टेक।।
काम रहे वहाँ राम नहीं है, कामने राम बिसारा है जी ।
कामादिकसे दुर्गुण ठहरे, निष्कामी मन मारा है जी ।।१।।
रामहि राम जहाँपर बेठे, वहँ रामहिकी सारा है जी ।
राम बिना दुसरा नहिं भावे, रामहि राम ये सारा है जी ।।२।।
साधन ये कामादिक जानो, साधे कौन निहारा है जी ।
साधनसे न्यारा परमेश्वर, यह तो ढोंगधघतूरा है जी ।।३।।
सहजसहजमें साधे योगा, वह साधन नहिं हारा है जी ।
तुकड्यादास कहे गुरुबोधा, कामादिकसे टारा है जी ।।४।।