जब ज्ञानका सिंह नहीं गरजा

(तर्ज : तेरी कलबल है न्यारी.....)
जब ज्ञानका सिंह नहीं गरजा, तब मृगरुप काम बडा जकडा ।।टेक।।
जब सूरजका परकाश भया, तब भेदअँधार जगहहि पडा ।।१।।
जब दुर्बलमें बलवान गया, तब दुर्बल-तेज फिकाहि पडा ।।२।।
जब भूखनके मुख अमिय लगा, तब छोड दिया मुखबाद-धडा ।।३।।
जिस जीवको प्रेम मिला प्रभुका, वह लौट प्रभू-दरबार चढा ।।४।।
नहिं लाज है काजनके संँगमें, मद्‌-मत्सरसे खुब जाय लडा ।।५।।
जब आपहि आप भरा देखा, तब तुकड्या तुकडोंसे उखडा ।।६।।