किसिने जगाया मोहे, किसिने जगाया जी ?
(तर्ज : तज दियो प्राण, काया कैसी रोई... )
किसिने जगाया मोहे, किसिने जगाया जी ? ।।टेक।।
रत्नजडित भ्रमजाल - सेजपर पड़ता था मैं सोया ।
गहरी नींद तोड़कर मेरी ।
चेतसे चिताय दीनो, मुरदा कराया जी ।।१।।
इस महलको दस दरवाजे, दसवाँ बंद कराया ।
तोड़ कुलूप किंवाडा खोला ।
निजानंद-धुंदमाँही, किसिने नहाया जी ? ।।२।।
एकसे एक लगी खिडकियाँ, पाँचों दार खुलाया ।
अरगन-बाज चौघडा बाजे ।
नादके मधूर माँही देहको ड्लाया जी ! ।।३।।
में जानूँ, इक सद्गुरुके बिन दूजा कोउ न आया ।
तुकड्यादास गुरुका प्यारा ।
मरनेसे पहलेही मरना सिखाया जी ! ।।४।।