लाज गई खोय, भोलेनाथ के कहानेसे
(तर्ज : तज दियो प्राण, काया कैसी रोई... )
लाज गई खोय, भोलेनाथ के कहानेसे ।।टेक।।
आँख मूंदकर बैठो थो में ध्यान लगाकर भोलेका ।
डमरू-बाज सुना काननमें ।
भीग गई नैना सारी गंगके बहानेसे ।।१।।
मृगछाला कटिमें कसलीन्ही, कंठ नील जहराना था ।
मस्तकमें इक चंद्रज्योत थी ।
पीयके मगन भई, भंगके सहानेसे ।।२।।
मुँडमाल गलबीच बिराजे, नंदीबैल सवारी था ।
अंग बिभूती, जटा सीसपर ।
तिनहु नेत्र शोभे, नागके रहानेसे ।।३।।
बास सदा कैलास पधारा, त्रिशूल करमें लीन्हा था ।
तुकड्यादास दया कर ऐसी ।
कबहु न भुले तेरे, ध्यानको नहानेसे ।।४।।