वाकिब न हमें तनकी, जनकी कहां रहेगी ?

(तर्ज : तेरे दिदार के लिये बंदा हैरान है ...)
वाकिब न हमें तनकी, जनकी कहां रहेगी ? ।।टेक।।
लौ लागि है खुदासे, ख़ुदमें खुदा रमाया ।
मरता न हूँ कभी मैं, मट्टी मेरी  बहेगी ।।१।।
दुनिया खबर नहीं है, जीती या मर रही है ।
मस्तान हूँ पडा मै, यह याद ना रहेगी ।।२।।
काबा न जानता हूँ, देवल न मानता हूँ ।
ऐसे ये पागलोंको, माया कहाँ सहेगी ? ।।३।।
जानूं जुदा न कोई, बिरलेने बात पाई ।
तुकड्या वही कहाई, निज-मीलना महैंगी ।।४।।