सुखदु:ख हमारे कौन सुने ? बिन नाथ सहायक कोई नहीं

(तर्ज: दिलें ही नहीं जब शान्ति...)
सुखदु:ख हमारे कौन सुने ? बिन नाथ सहायक कोई नहीं ।
चलती का यह संसार भरा, पर वक्त पडेपर कोई नहीं ।। टेक ।।
इन्सान तो अब हैवान बना,बिन स्वार्थके उसका मुंह न खुले ।
मतलब के सिवा उसे क्या मोहबत? मानवका नाता कोई नहीं ।। १ ।।
“पतितों का रक्षक एक प्रभू, यह सुनकर द्वारपे आये खडे ।
तुकड्या कहे लो चरणोंमे हमें, नही तो फिर आखिर कोई नहीं ।। २ ।।