दरबारमें साँईके , बरबाद खजाना है
(तर्ज : तेरे दिदार के लिये बंदा हैरान है...)
दरबारमें साँईके , बरबाद खजाना है ।।टेक।।
नहिं पापका निशाना, नहिं पूनका बयाना ।
नहिं कर्म -धर्म दोनों, हकमेंहि समाना है ।।१।।
नहिं पंथका ठिकाना, नहिं मोक्षका मकाना ।
जाना नहीं न आना, आबाद रमाना है ।।२।।
नहिं आँखका उफाना, नहिं ज्ञानका तुफाना ।
नहिं भेदको दिखाना, सब भेद गमाना है ।।३।।
तुकड्या कहे बिना तू, तेरा न और कोई ।
ये खेल खजानेसे, चूप गमको बताना है ।।४।।
(बरबाद= दिनपेदिन बढनेवाला, चौगुणा करनेवाला)