ईश ! तैने दासको, क्यों आस लगा दी प्यारे !
(तर्ज : मैं तो तेरा दास प्रभू !...)
ईश ! तैने दासको, क्यों आस लगा दी प्यारे ! ।
हुस्नको बतायके अब, छूप दगा दी प्यारे ! ।।टेक ।।
द्वार तेरे आयके हम लौट नहीं जायेंगे ।
चाहे कहो कुछभी अभी, लाज भगा दी प्यारे ! ।।१।।
आजतलक मरते थे, अबभी मरे कहावेंगे ! ।
नहिं तो दीदार दे अपना, क्यों प्यास जगादी प्यारे ! ।।२।।
कुछ आती है दया जो मेरी, दर्श दिलादे साँई ! ।
तुकड्याकी लाज राखके, भव क्यों न ढगादी प्यारे ! ।।३।।