ए नाथजी ! अनाथकी, अरजी न सुने आती है

(तर्ज : में तो तेरा दास प्रभू ! ...)
ए नाथजी ! अनाथकी, अरजी न सुने आती है ।
वक्त चली जा रही, अब मौत आय खाती है ।।टेक।।
तुमहीतो हो उठायके, प्रल्हादको बचाया था ।
सुनता हूँ बातमी यह, पुराणोंमें   सदा    गाती    हैं ।।१।।
गजके उपर बिपत पड़ी, तुम आयके उठाया था ।
सुनाता हूँ  तुम दयाल हो आशा यह मन पटाती है ।।२।।
मचाई धृवने पुकार, नाम तुम्हारा लेकर ।
कर दिया अमर उसे, कीर्ती  भुवनमें    जाती     है ।।३।।
होगया कसूर मेरा, आप माफ करते हो ।
तुकड्याकी लाज रखो जी ! घबरा गयी यह छाती ह ।।४।।