हर जापमें समाया वह
(तर्ज : मैं तो तेरा दास प्रभू ! ...)
हर जापमें समाया वह, जो कि जिगरका जलवा ।
हर घटमें रमाया वह, जो कि जिगरका जलवा ।।टेक।।
घुमनेको हम जी जाते थे, काशी-दुवारका जिसको ।
खिलकतमें भरा बैठा वह, जो कि जिगरका जलवा ।।१।।
कानोंमें उसकी घुनघुन और आंँखोमें तारे उसके ।
सब तनमें झलकता हैं, वह जो कि जिगरका जलवा ।।२।।
मुझमें भरा धरा जैसा, वेसाहि सभी दुनियामें ।
दीनमें वह नाथमें वह कि जिगर का जलवा ।।३।।
कुछ देव है न भक्त है, माया के ढीग नबियोंमे ।
तुकड्या मिला मिलानेम वह, जो कि जिगरका जलवा ।।४।।