झलकी दिखा रहा है, वह आँखोमें
(तर्ज : मैं तो तेरा दास प्रभू !...)
झलकी दिखा रहा है, वह आँखोमें नशा भर-भरके ।
अरगन सुना रहा है, वह कानोंमें बसा कर-करके ।।टेक।।
सूझे न मुझे कुछ भी, तेरे कया तमाशे होते है? ।
घंटी हिला रहा है वह, नाभीसे उपर - सर - सरके ।।१।।
घरदारका पता भला, नहिं ख्याल भाईबंदोका ।
झिलमिल गिरा रहा है वह,अमृतको पास धर-धरके ।।२।।
पागल बना इसीमें मैं, अब क्या किसे सुनाऊँगा? ।
आवाज आप देता वह, दोनोंहि लब्ज तर - तरके ।।३।।
देखूँ किधरभी वह ही, जल थलमें भरा पाता है ।
तुकड्या कहे दिवाना हो, वह मिलता मिलाय हर-हरके ।।४।।