अलमस्त पिलाया प्याला
(तर्ज : गुजरान करो गरिबीमें बाबा ! ... )
अलमस्त पिलाया प्याला । जिस प्यालेसे मन धाला जी ।।टेक।।
क्या कहना प्यालेकी बातें, नशा चढी अलबेला ।
नजर न आवे दुनिया दौलत, आपहि आप अकेला जी ।।१।।
आपहि गावे आपहि रोवे, आपहि है मतवाला ।
आपहि अंदर आपहि बाहर, जिधर उधर उजियाला जी ।।२।।
टूट पडी करनी कर्तापन, कारण भेद बिहाला ।
जो चलता था वही चला, कुछ मेला है ना जीला जी ।।३।।
बिन संगत संतनके कोई, है न पचानेवाला ।
तुकड्यादास गुरुका प्यारा, जहाँसे तहाँ अकेला जी ।।४।।