सुन जरा जागरे भाई ! क्यों इश्क
(तर्ज : गुजरान करो गरिबीमें बाबा ! ... )
सुन जरा जागरे भाई ! क्यों इश्क-नशा चढवाई जी ।।टेक।।
देख उलटकर आँखी अपनी, हीरा लाल छुपाई ।
सोनेसे खोया यह सारा, बिरथा उमर गमाई जी ।।१।।
मायाके जलहीमें डूबा, नैय्या बीच गडाई ।
सद्गुरुराज भजो दिलम्याने, बेडा पार लगाई जी ।।२।।
अलख बराबर पलक जमाकर, देखो तनमें साँई ।
साँईसे यह बेडा तेरा, अमर पदहिमें जाई जी ।।३।।
सुनो बचन मेरा दिलम्याने, क्या कहना रह जाई ? ।
तुकड्यादास जोर कर बोले आपमें आप समाई जी ।।४।।