खुब पुरी पुरी चतुराई । चतुराईसे मन पाईजी

(तर्ज : गुजरान करो गरिबीमें बाबा ! .... )
खुब पुरी पुरी चतुराई । चतुराईसे मन पाईजी ।।टेक।।
पंचतत्त्वका बंगला जिसके अंदर राम बिठाई ।
आवत जावत नजर न आवे, भूलकी नींद चढाईजी ।।१।।
दस दरवाजे उस बंगलेको, दसवाँ रहे लगाही ।
सद्गुरु-कुंजी मिले बिगर वह, कभी न खुले भाईजी ! ।।२।।
एक एकसे सात कड़ानी,  सप्तउपर यदुराई।
स्वाँसपंथ लेकर कोइ जावे, उसे जगह मिल जाईजी ।।३।।
स्वाँसरूप इक खंब, खंबके अंदर बात कहाई ।
कहता तुकड्या वही पंथ ले, पुरी जगह मिलवाईजी ।।४।।