सारि रहगई मनकी मनमें

(तर्ज : गुजरान करो गरिबीमें बाबा ! ... )
सारि रहगई मनकी मनमें , अब चला भटकता बनमें ।।टेक।।
कवड़ी कवडी जोड़ कमायी, कहूँ न खायी तनमें ।
गाँड लँगोटी छोड चला है, दिल अटका है धनमें ।।१।।
मेरा मेरा करते करते, ख्याल रहा जीवनमें ।
अंतकाल होगयी बिमारी, तन खोया  है    छनमें ।।२।।
बेटा तो रोटी नहिं देवे, ग्रास फेके मुरदनमें ।
बाप तो जमघर भूल पड़ा है, बैठा है धन - धनमें ।।३।।
तुकड्यादास कहे मत भूलो, करलो जो कुछ छिनमें ।
चला जाय जब हंस निकलके, तन जावे माटिनमें ।।४।।