साँवरिया ! मोरे मुरलीने भूल गये कान
(तर्ज : मिलादो सखी ! श्यामसुंदर.... )
साँवरिया ! मोरे मुरलीने भूल गये कान ।।टेक।।
सास कहे तेरी लाज गयी है, धूल भरा अभिमान ।।१।।
ससुर बिगारे मारत मोहे, कैसी रहेगी जान ? ।।२।।
जमुना- तटपर बंसि बजाकर, लगवा लेवत ध्यान ।।३।।
तुकड्या कहे वह प्रेम जिन्होंका, अंतर्बाह्य समान ।।४।।